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कुछ अजीब सा डर था


कुछ अजीब सा डर था इसकी इन आँखों में । न जाने आने वाले हर बुरे पल की खबर हो जैसे । गुलाबी रंग की दीवार का भार अभी से इसके सिर पे रख दिया हो शायद और बनी जो उसकी टोपी पर बना है, जो उसके सबसे नज़दीक है जिसके साथ वो खेलती है दिन भर, कहीं वही इसका दिल न तोड़ दे । डर है उसे की जो हाथ आज उसकी पीठ पर रखा है, कहीं वही हाथ धीरे धीरे उसके सीने को न खरोंचने लगे । डर है उसे, कि जो लोग उसे गुड़िया गुड़िया बोलकर अपनी बाहों में ले रहे है जहाँ उसे एक सुकून मिलता है, कहीं वही बाहें इसको अपनी रूह मैं न कैद करले ओर बाद में बस एक गुड़िया समझकर ही फैक दे। कमाल है, जिस उम्र में सोने,खाने और हगने के अलावा किसी ओर चीज़ मैं वक़्त नही मिलता है, आज मैंने अपने ही इस देश में जहाँ रानी लक्ष्मीबाई ने जन्म लिया था एक छोटी सी उम्र की एक लड़की को देखा, कुछ अजीब सा डर था उसकी उन आँखों में ।

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