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झील के किनारे का पेड़




झील के किनारे खड़ा यह पेड़ और बहुत दूर उस पार वो इंसानो की दुनिया, शायद यह पेड़ यहाँ खुश है, इंसानो से दूर और डर भी है क्योंकि पता नहीं वो कब इस पार अजाएँगे और इसकी फैली हुई आज़ाद टहनियों को धीमे-धीमे करके तोड़ते जाएंगे। एक वक्त था जब हर पेड़ में उत्सुकता थी कि कब इंसान आएंगे और उनकी टहनियों पे रस्सी लटका कर झूला बनाकर जोर जोर से झूलना शुरू करेंगे। ऐसा लगता था मानो वो उनकी गोद मे खेल रहे हों। कितना अजीब है ना कल आप जिनकी गोद में खेल रहे थे आज उनको ही आपसे डर है। डर सबको लगता है, पेड़ो को भी, आपसे। आप भी तो डरने लगे है, एक दूसरे से या कहूँ खुदसे। जरूरी है।

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