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सच में कूद जाऊँ, निशा?



अभी तो बस निकला ही हूँ तुम्हे ढूंढने, और तुम शर्मा कर ऐसे आसमान को भी गुलाबी कर दी। यह लंबे सफर की एक बात बहुत बुरी है कि वो तुम्हे सोचने पर मजबूर कर ही देता है कि जब तुम्हारा यह सफर खत्म होगा तो तुम क्या करोगे, जैसे मैं सोचता हूँ, तुम स्टेशन पर खड़ी मेरा इंतज़ार करोगी और ट्रैन के आते ही तुम मुझे डब्बो में तलाश कर रही होंगी और मैं पीछे से आकर तुम्हे पूछूँगा की यह बम्बई जाने वाली ट्रेन कहाँ से मिलेगी तब तुम मुझे अनसुना कर दोगी क्योंकि तुम्हारा पूरा ध्यान मुझे तलाशने में है, तुम्हारी आँखें एक नीले से शर्ट वाले लड़के को ढूंढ रही होगी जिसके हाथ में हल्का कत्थई रंग का बैग एक कंधे पे लटका होगा। मैं फिरसे तुम्हे पूछुंगा की आपने बताया नहीं मैडम, फिर तुम खिसिया के बोल दोगी 'रेल की पटरी पर ही आएगी, जाओ कूद जाओ' लेकिन इस बार भी तुम मुड़कर नहीँ देखोगी, और फिर मैं थोड़ा प्यार भरी आवाज़ में तुम्हारा नाम लेकर कहूँगा " सच में कूद जाऊँ, निशा?" तब तुम्हारे शरीर मे एक कम्पन सी दौड़ उठेगी मगर इस बार तुम पीछे मुड़ने में शर्मा रही हो, कितने ही विचार तुम्हारे मन में पैदा होंगे जैसे, की मुड़कर सबसे पहले तुम मेरे गले लगोगी या थप्पड़ लगाओगी की तुम सामने से नही आ सकते थे कितना सताते हो... और उतने में ही तुमने सोच लिया कि क्या करना है और तुम मुड़ी, तभी चाय-चाय बोलकर जबरदस्ती अच्छी चाय चिल्लाने वाले ने मेरा ध्यान भटका दिया... और 5 रुपये वाली चाय मैंने सबकी तरह 10रुपये में खरीद ली और फिर सोचने लगा कि स्टेशन पहुचने से पहले तुम्हे फ़ोन करके बताऊ या फिर ऐसे ही करू जैसे ख्याल में सोचा है... ❤️

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