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मुझे मारा है अपनों ने . . .

Updated: Jun 1, 2020

मैं चीख रहा था चिल्ला रहा था मदहोशी के आलम में डूबी दुनियो को अपना समझ पुकार रहा था

बच्चे जिनहे मैं कंधो पर बिठाल कर आसमान की सैर कराता था आज मेरी ही आँखों के सामने कोई और उन्हें गोदी में झुला रहा था

लोग जो मेरे सीने से लग कर के रोते थे आज मेरी मय्यद पर खोये हुए है युवा जिन्हें मैं अक्सर समाज के कालिख से बचाता था आज किसी और के साथ बाहों में बाहें दाल बिस्तर पर सोये हुए है

कोई आंधी या तूफ़ान में कहाँ इतना दम जो मेरे कलेजे को चीर , पार हो सके मैं उन घावों से नहीं मरा जो बहार से लगे थे मैं मारा अकेलेपन से जी हाँ अपने मन से

इकलौता खड़ा हूँ इस बंजर में कहीं एक बार दिल से तो पुकारते फिरसे जी उठता अभी

थोडा कड़वाहट से ही सही मगर सच बोलता हूँ अपनों से मैं तो नीम का पेड़ हूँ मुझे मारा है अपनों ने

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